व्यवस्थाविवरण 1 अध्याय से अध्ययन
👉व्यक्तिगत इच्छा से न रहें, बल्कि परमेश्वर की इच्छा
के अनुसार आगे बढ़ें (6,7)
👉परमेश्वर की योजना के खिलाफ नहीं कुड़कुड़ाएँ, बल्कि
आभारी रहें और उनकी योजनाओं पर भरोसा रखें (27,28)
👉धर्मी लोगों द्वारा प्रस्तावित योजनाओं को अस्वीकार
न करें, बल्कि विचारशीलता से समर्थन दें (12-14)
👉प्रभु की आज्ञा का विरोध न करें, बल्कि उनके वचन को
मानने को तैयार रहें (26,42,43)
👉पक्षपात न करें, बल्कि सही और निष्पक्ष रूप से न्याय
करें (17)
👉विरोध या नुकसान की ओर न देखें, बल्कि उस प्रभु पर
भरोसा रखें जो हमें उठाए चलता है, हमारे लिए एक जगह तलाशता है और हमें मार्ग दिखाता
है (31-33)
👉किसी से न डरें, बल्कि सबके साथ एक जैसा व्यवहार करें
(17)
👉दूसरों से ईर्ष्या न करें, बल्कि प्रोत्साहित करें
और सशक्त करें (37)
👉परमेश्वर से दूर नहीं भटकें, लेकिन उनके प्रति विश्वासयोग्य
रहें (35,36)
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