गिनती 18 अध्याय से अध्ययन
👉परिश्रमपूर्वक सेवा करें, क्योंकि सेवा परमेश्वर की ओर से एक दान है
(7)
👉परमेश्वर को सर्वश्रेष्ठ दें, क्योंकि वह हमें सर्वश्रेष्ठ देता है (12,29,30,32)
👉अपराधों का ज़िम्मेदारी लें, क्योंकि परमेश्वर और उनकी सेवा पवित्र है (1,19,23)
👉अभिलाषा न करें, क्योंकि परमेश्वर ही स्वयं हमारा भाग और अंश है (20)
No comments:
Post a Comment